(मित्रों, प्रस्तुत हास्य-व्यंग सौम्या टाइम्स नामक समाचार पत्र में वर्ष २००९ में प्रकाशित हो चुका है और इसे लोगों ने बहुत पसंद किया है. थोड़ा-बहुत संशोधन सहित यह लेख आपके लिए पुन: प्रस्तुत है. )
लेकिन सुधि पाठको, हम आपको पहले ही बता देते हैं कि हम इन उलझनों में फँसने वाले नहीं हैं। हमें तो बस एक ही बात पर विचार करना है कि सबसे अच्छा अचार कौन-सा है? भ्रष्ट + अचार = भ्रष्टाचार। कृपया संधि के नियमों पर न जाएँ, अन्यथा मुझे बहुत कष्ट पहुँचेगा। तो स्पष्ट है कि आप गुरुजनों से मेरा विनम्र आग्रह है कि इस बात को समझिए कि इन बुद्धिजीवियों के निष्कर्ष कैसे थे और क्या थे, इस पर अन्यथा बहस करने से कोई लाभ नहीं है क्योंकि यह अचार हम सदियों से खाते आ रहे हैं और आगे भी खाते ही रहेंगे। वैसे भी भ्रष्टाचार का अमृत अनादि काल से भारतवर्ष में उपस्थित रहा है। आप नहीं मानेंगे तो हम आपको इस कथा से परिचित करवायेंगे।
यह कथा रामायण काल की है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार रावण एक ब्राह्मण का वेश धारण कर नर्क देखने के लिए गया। वहाँ उसने देखा कि सभी पापियों को तरह-तरह के दण्ड दिए जा रहे थे। उन्हें तरह-तरह से यातनाएँ दी जा रही थीं और इस हेतु बहुत प्रकार के उपकरणों आदि के प्रयोग भी किए जा रहे थे। एक स्थल पर एक बहुत बड़ी कढ़ाई रखी थी, जिसमें तेल उबल रहा था, किन्तु किसी भी पापी को उसमें नहीं डाला जा रहा था। रावण को जानने की इच्छा हुई कि ऐसा क्यों था।