अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः।
ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्माऽपि तं नरं न रञ्जयति।।नीति.4।।
(अज्ञः सुखं आराध्यः, विशेषज्ञः सुखतरं आराध्यते, ज्ञानलवदुर्विदग्धं च तं नरं अपि न रञ्जयति)
अर्थात् अज्ञानी को सरलता से समझाया जा सकता है, ज्ञानी को और भी अधिक सरलता से समझाया जा सकता है। जिसे आधा-अधूरा ज्ञान हो और वह स्वयं को विद्वान् माने, तो उसे ब्रह्मा भी नहीं समझा सकते।
इस संसार में तीन प्रकार के प्राणी होते हैं, एक अज्ञानी, दूसरा ज्ञानी यानी विशेषज्ञ और तीसरा अधकचरे ज्ञान से स्वयं को पण्डित मानने वाला। जो लोग अज्ञानी होते हैं, जिन्हें कुछ पता नहीं होता, उन्हें आप किसी बात को सरलता से समझा सकते हैं, क्योंकि अज्ञानता के कारण वह आपकी बात को एक अच्छे शिष्य की भाँति स्वीकार कर लेता है। जो ज्ञानी होते हैं, वे संकेतमात्र से ही किसी बात को सरलता से समझ लेते हैं। अतः उन्हें समझाने में कठिनाई नहीं होती। किन्तु अल्पज्ञानी जब स्वयं को विद्वान् मानने लगे, तो यदि उसे स्वयं ब्रह्मा भी कुछ समझाने का प्रयत्न करें, तो असफल हो जाते हैं, क्योंकि ऐसे व्यक्ति का अहंकार उसे किसी भी विषय की समझ में बाधा उत्पन्न करता है। वह मात्र अपनी बात को ही प्रमाणित करने का प्रयास करता है और उसकी किसी दूसरे की बात को समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है। दूसरे के प्रति वह श्रद्धाभाव उत्पन्न नहीं कर पाता है। अतः ऐसे व्यक्ति को समझाने का प्रयत्न व्यर्थ है।
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विश्वजीत सपन
ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्माऽपि तं नरं न रञ्जयति।।नीति.4।।
(अज्ञः सुखं आराध्यः, विशेषज्ञः सुखतरं आराध्यते, ज्ञानलवदुर्विदग्धं च तं नरं अपि न रञ्जयति)
अर्थात् अज्ञानी को सरलता से समझाया जा सकता है, ज्ञानी को और भी अधिक सरलता से समझाया जा सकता है। जिसे आधा-अधूरा ज्ञान हो और वह स्वयं को विद्वान् माने, तो उसे ब्रह्मा भी नहीं समझा सकते।
इस संसार में तीन प्रकार के प्राणी होते हैं, एक अज्ञानी, दूसरा ज्ञानी यानी विशेषज्ञ और तीसरा अधकचरे ज्ञान से स्वयं को पण्डित मानने वाला। जो लोग अज्ञानी होते हैं, जिन्हें कुछ पता नहीं होता, उन्हें आप किसी बात को सरलता से समझा सकते हैं, क्योंकि अज्ञानता के कारण वह आपकी बात को एक अच्छे शिष्य की भाँति स्वीकार कर लेता है। जो ज्ञानी होते हैं, वे संकेतमात्र से ही किसी बात को सरलता से समझ लेते हैं। अतः उन्हें समझाने में कठिनाई नहीं होती। किन्तु अल्पज्ञानी जब स्वयं को विद्वान् मानने लगे, तो यदि उसे स्वयं ब्रह्मा भी कुछ समझाने का प्रयत्न करें, तो असफल हो जाते हैं, क्योंकि ऐसे व्यक्ति का अहंकार उसे किसी भी विषय की समझ में बाधा उत्पन्न करता है। वह मात्र अपनी बात को ही प्रमाणित करने का प्रयास करता है और उसकी किसी दूसरे की बात को समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है। दूसरे के प्रति वह श्रद्धाभाव उत्पन्न नहीं कर पाता है। अतः ऐसे व्यक्ति को समझाने का प्रयत्न व्यर्थ है।
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विश्वजीत सपन
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