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Saturday 1 April 2023

महाभारत की महत्ता

 



महाभारत का नाम हम सबने सुना है और अनेक कथायें भी हम सभी जानते हैं, किन्तु भारतीय साहित्य में इसकी महत्ता कितनी है और इसे ‘पंचम वेद’ क्यों कहा जाता है? इस विषय पर एक चर्चा अवश्यक प्रतीत होती है। भारतीय वाङ्गमय की यह एक अमूल्य निधि है और श्रीमद्भगवत गीता जैसा अमूल्य रत्न इसी महासागर की देन है।

            यह भारत का एक सच्चा इतिहास भी है और साथ ही इसमें धर्म, ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, योग, नीति, सदाचार, अध्यात्म आदि समस्त प्रकार के विषयों को सुन्दरता से बताया गया है। इन विषयों के विवेचन इस प्रकार दिये गये हैं कि एक पाठक सरलता से भारतीय दर्शन के गूढ़ तत्त्वों को समझ सके। आख्यान एवं उपाख्यान आदि के माध्यम से इसमें बातें पाठक के हृदय तक पहुँचती हैं।

            इसके रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास जी ने अपने श्रीमुख से कहा है - ‘‘यन्नेहास्ति न कुत्रचित्’’ अर्थात् जिस विषय की चर्चा इसमें नहीं की गयी है, उसकी चर्चा अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है। इस उक्ति से ही इसकी विशालता और सारगर्भिता के संबंध में पता चल जाता है। इस महासागर को उपजीव्य बनाकर अनेक कवियों ने महाकाव्यों, नाटकों आदि की रचनायें की हैं। आज भी इसमें घटनाओं को प्रासंगिक माना जाता है, क्योंकि यह भारतीय समाज को सुन्दरता से चित्रित और प्रदर्शित करता है।

            इस महाग्रन्थ में कुल मिलाकर एक लाख श्लोक हैं और इसी कारण इसे ‘शतसाहस्त्री संहिता’ भी कहते हैं। इसे यदि भारतीय ज्ञान का विश्वकोष कहा जाये, तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। महाभारत का युद्ध और पाण्डव एवं कौरवों के इतिहास के अलावा भी इसमें अनेक ऐसी व्याख्यायें हैं जिनको समझना और जानना आवश्यक होगा। मात्र महाभारत की कथा तक सीमित रहकर इसकी उपयोगिता को कम करना ही सिद्ध होता है।


विश्वजीत 'सपन'