मातृ दिनम् अथवा मातृ दिवस आज विश्व के लगभग सभी देशों में
मनाया जाता है। यह माता के सम्मान में मनाया जाने वाला दिवस है, जो
उत्तरी गोलार्द्ध में प्रायः अप्रैल-मई के महीने में मनाया जाता है, इसके
बाद भी कई देशों में विभिन्न तिथियों को मनाया जाता है। यदि हम इतिहास को खंगालें
तो पता चलता है कि इस दिन को मनाने का प्रारंभ अमेरिका में वर्ष 1908 में हुआ था।
अन्ना जारविस नामक एक महिला ने अपनी माता एन जारविस के
सम्मान में इसे पहली बार मनाया था, जो अमेरिकी नागरिक विद्रोह में हताहतों की सेवा में
लगी थीं। अन्ना जारविस ने ही 1912 में इसे मई के दूसरे सप्ताह में मनाने की बात
कही थी और तब से यह अधिकांश देशों में मई के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। साथ
ही अनेक देशों में इसे अपनी संस्कृति एवं सभ्यता के अनुसार किसी महत्त्वपूर्ण दिवस
की याद में मनाया जाने लगा है और इसलिए विभिन्न देशों में इसे मनाने का महीना एवं
दिवस भिन्न है।
उदाहरण के तौर पर, अधिकांश अरब देशों में यह 21 मार्च, अफगानिस्तान
में 12 जून, अर्जेन्टीना में अक्टूबर के तीसरे रविवार, अर्मेनिया
में 7 अप्रैल, बेलारूस में 14 अक्टूबर, बोलीविया
में 27 मई, बुल्गारिया 8 मार्च, इण्डोनेशिया
22 दिसम्बर में मनाया जाता है।
भारत देश में इसे मई के दूसरे सप्ताह में मनाया जाता है और
इसे मनाने का कारण यह है कि भारतीय संस्कृति में माता को देवी का स्थान प्राप्त है
और उसकी पूजा की जाती है।
इस संबंध में एक बहुत ही प्रचलित कथा है। एक बार एक युवक को
एक युवती से प्रेम हो गया। वह उससे अंधा प्रेम करने लगा और उसे पाने के लिए कुछ भी
करने को तैयार हो गया। विवाह का प्रस्ताव रखने पर उस युवती ने कहा कि वह विवाह तभी
करेगी जब वह अपनी माँ का हृदय निकाल कर लाए और उसे उपहार के रूप में प्रदान करे।
युवक प्रेम में पागल था और उसने अपनी माता की हत्या कर दी और हृदय निकाल कर तेजी
से अपनी प्रेमिका के पास जाने लगा। शीघ्रता में होने से उसे ठोकर लगी और वह गिर
पड़ा। इस पर माँ के हृदय बोल उठा - "बेटे, कहीं चोट तो नहीं लगी। आ बेटा, पट्टी
बाँध दूँ।"
विश्वजीत 'सपन'