गौतम बुद्ध ने कहा था - ‘‘बुरे लोगों के विध्वंस के कारण लोगों को उतना दुःख नहीं होता, जितना कि अच्छे लोगों के कुछ न बोलने के कारण।’’ आज यही स्थिति दिख रही है। यदि हम समाज के समस्त प्रकार के बुरे लोगों की गणना करें, तो उनकी संख्या कुल जनसंख्या की तुलना में नगण्य निकलती है। किन्तु आश्चर्य यह कि वे नगण्य लोग आज अग्रगण्य हो गए हैं और करोड़ों की जनता को दुःख व पीड़ा देने में सक्षम हैं। एक बड़ा कारण यह है कि आज अच्छे लोग चुप रहना पसंद करते हैं। यह चुप्पी अकारण नहीं है। वे कुछ नहीं कहते क्योंकि उन्हें ऐसा महसूस होता है कि कोई उनकी बात नहीं सुनेगा। अतः वे अनुचित देखकर भी चुपचाप रहते हैं।
यह प्रवृत्ति समाज को अंधकार के गर्त में धकेलने का कार्य कर रही है। अच्छाई महँगी अवश्य हो गई है, किन्तु समाप्त नहीं हुई है और समाज में अच्छे लोगों की कमी भी नहीं है। ‘न ऊधो का लेना न माधो का देना’ वाली कहावत को चरितार्थ करने वाले ये अच्छे लोग यदि आज जागरुक हो जायें, तो समाज में बुराइयों का सर्वनाश तत्क्षण ही संभव हो जाएगा। किन्तु यह काम पुनः किसी विध्वंसात्मक प्रणाली से नहीं होना चाहिए। अतः सावधानी बतरनी होगी, क्योंकि कई बार बोलने की जद में अच्छी सोच वाले भी भटक जाते हैं और बंदूक जैसे हथियारों आदि का सहारा लेकर पुनः उसी विध्वंस के समर्थक बन बैठते हैं, जिनसे बचने के लिए उन्होंने बोलना शुरू किया था। आज नक्सलियों का यही हाल है। आतंकियों का यही हाल है। शुरुआत तो इनकी भी कुछ अच्छा करने की थी, लेकिन केवल बुराई ही दामन में बच पाई है। अतः बोलने से हमारा स्पष्ट मतलब इस बात से है कि अनुचित का विरोध करना, हिंसा द्वारा नहीं बल्कि शांति के द्वारा। अनुचित देखने पर आपत्ति जताना, अनुचित करने वाले व्यक्तियों को टोकना। उसे अच्छा करने को कहना। अच्छाई की सीख देना। अनुचित करने वालों को हतोत्साहित करना। ऐसे लोगों को कानून का भय दिखाना आदि। यहाँ एक बात और स्पष्ट करना आवश्यक हो जाता है कि अनुचित वह है, जिसे समाज या शास्त्र कहता है। वह सभी के लिये अनुचित है अथवा नहीं, उस पर कुछ कहना उचित नहीं होगा क्योंकि वह एक अलग विचार का हिस्सा है।
अक्सर देखा जा सकता है कि हम गलती करने वालों को देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। तब हमें क्या पड़ी है का फार्मूला हमें भा जाता है। लेकिन हम यह भी नहीं सोचते कि इस प्रकार हम ही उन्हें गलत करने के लिए बढ़ावा दे जाते हैं। जब गलत करने वालों को कोई टोकता नहीं तो उन्हें ऐसा महसूस होता है कि किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि कोई उसे रोक सके या टोक सके या फिर उन्हें ऐसा लगता है कि वह जो कर रहा है, वही ठीक है क्योंकि किसी को कोई आपत्ति नहीं है।
विश्वजीत 'सपन'