"विश्वजीत सपन" वो नाम है जो जितना गहरा व्यक्तित्व है उसको कोई आलेख शब्दों में नहीं बाँध सकता... आपके अंदर एक कलाकार बसता है जो एक बालक की तरह है, उस बालक की तरह जो हर पल कुछ न कुछ नया ढूँढने और सीखने के लिए लालायित रहता है... आपमें जो सबसे बड़ी बात है वो है अपने को सदैव रचना संसार का विद्यार्थी समझना और यही आपकी सफलता की कुँजी है जो आपको पल-प्रतिपल सफलता की ओर अग्रसर करती है... इस आलेख के जरिये आपके व्यक्तित्व की जो झलक पाठक के सामने रखी गयी है वो निश्चित तौर पर पाठक को आपके व्यक्तित्व से जोड़ने में सक्षम है... लेकिन मैं पाठकों से अनुरोध करूँगा कि अभी भी बहुत से पहलू हैं जो "सपन" साहब के बारे में जानने को बाकी है, मैं उनको जितना जान पाया हूँ उसके अनुसार उनके अंदर एक "मानव" बसता है, वो "सच्चा मानव" जो बनना ही आज के बदलते परिवेश में सबसे मुश्किल है लेकिन उन्होंने इस पर विजय प्राप्त की है और आज मुझे उनको एक सफल और सुसंकृत मानव कहने में कोई हिचक नहीं होती है... अपनी बात का उपसंहार करते हुए बस इतना ही कहूँगा कि...
जिसे इंसानियत कहते 'सपन' में वो रही बहती बने दुनिया हसीं ज़न्नत हमेशा वो रही कहती...
आपके मुख से इन बातों को सुनकर मैं कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ. मैं नहीं जानता कि मैं क्या हूँ, किन्तु यह सच है कि साहित्य सीखने और उसकी सेवा का प्रयास हमेशा रहता है. किन्तु जो आपने मुझे सम्मान दिया है, उसके लिए मैं आपके सामने नत हूँ.
आदरणीय सपन जी भाई साहब सादर प्रणाम, आप क्या है यह आप चाहे जाने न जाने मैं अवश्य जानता हूँ... मेरा आपसे जितना परिचय है और जितना मैं आपके विचारों से जान पाया हूँ उसके अनुसार मैं इतनी बात दावे का साथ कह सकता हूँ कि आपमें एक मानव बसता है और आज इस संसार में यह सबसे बड़ी उपलब्धि है... बाकी सब तो इस दुनिया के बनाए हुए ढकोसले मात्र है... मेरा सलाम आपको... सादर वंदे...
आ. सुरेन्द्र नवल जी, सादर प्रणाम ... आपने जो मुझे सम्मान दिया है उसके लिए आभार प्रकट करना तुच्छता होगी ... अत: नहीं कर रहा हूँ, केवल इतना विश्वास अवश्य दिलाना चाहता हूँ कि आपकी बात को हमेशा याद रखूँगा और आपके इस विश्वास को कभी टूटने नहीं दूंगा ... सादर नमन
"विश्वजीत सपन" वो नाम है जो जितना गहरा व्यक्तित्व है उसको कोई आलेख शब्दों में नहीं बाँध सकता... आपके अंदर एक कलाकार बसता है जो एक बालक की तरह है, उस बालक की तरह जो हर पल कुछ न कुछ नया ढूँढने और सीखने के लिए लालायित रहता है... आपमें जो सबसे बड़ी बात है वो है अपने को सदैव रचना संसार का विद्यार्थी समझना और यही आपकी सफलता की कुँजी है जो आपको पल-प्रतिपल सफलता की ओर अग्रसर करती है... इस आलेख के जरिये आपके व्यक्तित्व की जो झलक पाठक के सामने रखी गयी है वो निश्चित तौर पर पाठक को आपके व्यक्तित्व से जोड़ने में सक्षम है... लेकिन मैं पाठकों से अनुरोध करूँगा कि अभी भी बहुत से पहलू हैं जो "सपन" साहब के बारे में जानने को बाकी है, मैं उनको जितना जान पाया हूँ उसके अनुसार उनके अंदर एक "मानव" बसता है, वो "सच्चा मानव" जो बनना ही आज के बदलते परिवेश में सबसे मुश्किल है लेकिन उन्होंने इस पर विजय प्राप्त की है और आज मुझे उनको एक सफल और सुसंकृत मानव कहने में कोई हिचक नहीं होती है... अपनी बात का उपसंहार करते हुए बस इतना ही कहूँगा कि...
ReplyDeleteजिसे इंसानियत कहते 'सपन' में वो रही बहती
बने दुनिया हसीं ज़न्नत हमेशा वो रही कहती...
'सपन' को मेरा सलाम...
सादर वंदे...
आदरणीय सुरेन्द्र नवल जी,
Deleteआपके मुख से इन बातों को सुनकर मैं कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ. मैं नहीं जानता कि मैं क्या हूँ, किन्तु यह सच है कि साहित्य सीखने और उसकी सेवा का प्रयास हमेशा रहता है. किन्तु जो आपने मुझे सम्मान दिया है, उसके लिए मैं आपके सामने नत हूँ.
सादर नमन
आदरणीय सपन जी भाई साहब सादर प्रणाम, आप क्या है यह आप चाहे जाने न जाने मैं अवश्य जानता हूँ... मेरा आपसे जितना परिचय है और जितना मैं आपके विचारों से जान पाया हूँ उसके अनुसार मैं इतनी बात दावे का साथ कह सकता हूँ कि आपमें एक मानव बसता है और आज इस संसार में यह सबसे बड़ी उपलब्धि है... बाकी सब तो इस दुनिया के बनाए हुए ढकोसले मात्र है... मेरा सलाम आपको... सादर वंदे...
Deleteआ. सुरेन्द्र नवल जी,
Deleteसादर प्रणाम ... आपने जो मुझे सम्मान दिया है उसके लिए आभार प्रकट करना तुच्छता होगी ... अत: नहीं कर रहा हूँ, केवल इतना विश्वास अवश्य दिलाना चाहता हूँ कि आपकी बात को हमेशा याद रखूँगा और आपके इस विश्वास को कभी टूटने नहीं दूंगा ...
सादर नमन