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Sunday 8 December 2013

लघु कथा - धर्म का वास्तविक अर्थ

प्राचीन काल की बात है। वे एक धर्मात्मा राजा हुआ करते थे धर्म के बारे में चिंतित रहते थे। एक दिन राजा ने अपने राज्य के सभी धर्मात्माओं को बुलाकर कहा - "आप सब लोग अपने-अपने धर्म के बारे में बताएँ, ताकि उनमें से किसी एक का मैं चयन कर सकूँ और अपना सकूँ, जो सर्वश्रेष्ठ होगा।"

अधिकतर धर्मात्माओं ने अपने-अपने धर्म की विस्तृत व्याख्या की और राजा से उस धर्म को अपनाने का आग्रह किया। राजा ने सबकी बात सुनी और उन एक धर्मात्मा की ओर देखा जिन्होंने अभी तक कुछ भी नहीं बताया था
। राजा का आशय समझ कर वह धर्मात्मा बोला - "महाराज, मैं कल अपने धर्म की बात नदी के उस पार जाकर आपको बताऊँगा।"

राजा ने दूसरे दिन एक से बढ़कर एक नाव की व्यवस्था करवाई। सभी सुख-सुविधाओं से लैश थे और धर्मात्मा एवं राजा दोनों के अनुकूल थे
। वे धर्मात्मा एक-एक कर सभी नावों में गए किन्तु नदी के उस पार जाने को तैयार नहीं हुए
। राजा को कुछ भी समझ नहीं आया और वे बार-बार आग्रह करते रहे, किन्तु उस धर्मात्मा ने उन नावों से चलने को मना कर दिया। अंत में राजा कुपित हो उठे और बोले - "महात्मन, यह क्या आप जब किसी भी नाव से जाना ही नहीं चाहते तो आपने नाव मँगाई ही क्यों?"

तब वह महात्मा बोले - "राजन, यह सत्य है कि इनमें से सभी नाव हमें नदी के उस पार ही ले जायेंगे, ठीक इसी प्रकार सभी धर्म हमें मानवता रुपी नदी को पार करवाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी धर्मों का सार एक ही है।"

तब राजा को समझ आया कि धर्म का वास्तविक अर्थ क्या है।

========================================== ==प्रस्तुति
                                                                                                                                  विश्वजीत 'सपन'

2 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा कहानी के महात्मा ने सभी धर्म मनुष्य को जीवन की राह ही दिखाते हैं । धर्म तो सत्य का निरूपण है । स्वामी विवेकानन्द भी अलग अलग धर्मों को ईश्वर तक जाने का मार्ग ही बताते थे ।

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    1. सादर आभार आपका आदरणीय नवीन चन्द्र झा जी. स्नेह बनाए रखें. सादर

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