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Sunday 13 May 2012

पानी हाय रे पानी (हास्य व्यंग)

पानी हाय रे पानी

‘सूँ ऽ सूँ ऽ’ की आवाज़ के साथ ही चक्रधर बाबू की नींद खुल गई। तेजी से उठकर भागे। वह भी ऐसे जैसे कि आज नहीं भागे तो ज़िन्दगी नहीं रह पाएगी। अंधेरा काफी गहरा था और उस काले अंधेरे में रास्ते में रखी एक तिपाई से टकरा गए। ‘हाय मार डाला’ के साथ उनकी चीख उभरी।

वह चीख सुनकर उनकी पत्नी भी जाग उठी। वह भी ‘क्या हुआ, क्या हुआ’ की रट लगाती उनके पीछे भागी आई। तो चक्रधर बाबू बोले - ‘अरे मुझे छोड़ो मोटर ऑन करो। आज तीन दिन बाद तो पानी आने वाला है।’

वे यह कहकर अपना दर्द पी गए। पानी पीने को नहीं मिलता तो दर्द ही पीना पड़ता है।

चक्रधर बाबू अकेले नहीं थे, जिन्हें पानी की दरकार थी। सारे मोहल्ले में पिछले तीन दिनों से पानी नहीं आया था। सब के सब मुँह बाये जल-निगम को कोस रहे थे। सड़ी-सी गर्मी और पानी की एक बूंद नहीं। घेराव, प्रदर्षन, रास्ता रोको आदि तो आम बात है ही। इस बार भी हुए। लगातार हुए। दिनों-सप्ताहों तक लोग सड़क पर अड़े रहे। प्रशासन के सामने पड़े रहे। लेकिन इस बार उनकी किसी ने नहीं सुनी। प्रशासन तो जैसे अंधी और बहरी थी। उसे न कुछ दिखाई देता था और न सुनाई। हाय-हाय हुई। ईश्वर और अल्लाह की दुहाई दी गई, लेकिन सबकुछ बेकार चला गया था।

चक्रधर बाबू सोचों की दुनिया में गोता लगाने लगे। पिछली बार जब ऐसा हुआ था तो लोगों ने खूब तोड़-फोड़ की थी। और फिर एक सप्ताह तक पानी नहीं आया था। आता भी कैसे ? लोग बेलगाम हो गए थे। जगह-जगह पाइपों में छेद करके पानी निकालने लग गए थे और फिर पाइप ही टूट गई। फिर पानी बहता रहा और लोग मुँह ताकते रहे। कहीं इस बार भी ...। चक्रधर बाबू सिहर गए। पत्नी पर भरोसा नहीं था। खुद ही जतन कर उठ गए और स्विच ऑन की, लेकिन मोटर नहीं चला। चलता भी कैसे ? बिजली ही नहीं थी। इस बार यही तो हो रहा था। जब पानी आता तो बिजली नहीं आती और जब बिजली रहती तब पानी नहीं आता था। ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे बिजली एवं पानी विभागों में कोई मिली-भगत थी। किसी ने सच ही कहा है - चोर-चोर मौसेरे भाई।

उन्हें याद आया कि कितने जतन के बाद बड़ी मुश्किल से पैसे जुटाकर उन्होंने पानी का मोटर खरीदा था। दरअसल पानी इतने कम ‘प्रेशर’ से आता था कि चार बाल्टी ही भर पाती थी। उसी से नहाना भी था और पानी भी पीना था। थक-हारकर जल-निगम से शिकायत की। पहले तो किसी ने सुनी नहीं। हाथ जोड़े, पैर पकड़े फिर भी काम नहीं बना। हाथ ढीला किया तो एक अधिकारी बोला - ‘बिना मोटर के पानी नहीं आएगा। सभी मोटर लगाकर खींच लेते हैं।’ और फिर उन्होंने भी मोटर लगा ली। पानी फिर भी उतना ही आया। ऊपर से बिजली का बिल भी बढ़ गया।

एक बार फिर से जल-निगम के पास गए। सुनवाई होने में काफी वक़्त निकल गया। घर में पानी की हालात में सुधार की गुंजाइश थी, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था। फिर एक दिन एक बड़े अधिकारी से मिले तो वे उनके मोटर लगाने की बात पर ही भड़क गए। बोलने लगे - ‘यही तो खराबी है आप लोगों में। जब मोटर लगाना वर्जित है तो आप लोग कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं? ऊपर से शिकायत भी करने आ जाते हैं कि पानी नहीं आता है। जब आप मोटर लगायेंगे तो दूसरों को पानी कैसे आएगा? मुझे तो आप पर ही कार्यवाही करनी चाहिए कि आपने मोटर लगाकर अवैध काम किया है।’

चक्रधर बाबू सकते मे आ गए थे। शिकायत करने आए थे और यहाँ तो उलटा ही उन पर कार्यवाही की बात होने लगी थी। थोड़ा लेन-देन करके मामला वहीं का वहीं दबा गए थे और किसी तरह जान छुड़ा कर आना मुँह लिए वापस आ गए थे। चलते समय उनके दुःख को भाँप कर एक छोटे अधिकारी ने समझाया था कि अब पाइप में तो उतना ही पानी था, जितना पहले आता था। मोटर लगाने से केवल खींच-तान ही हो सकती थी। हार्स पावर बढ़ाने का सलाह दिया गया, लेकिन अब वे और अधिक पैसे खर्च करने की स्थिति में नहीं थे। फिर उन्हें भरोसा नहीं रह गया था कि उसके बाद भी पर्याप्त पानी आएगा भी या नहीं।

अभी सोच की गाड़ी चल ही रही थी कि वर्तमान में आना पड़ा इस सोच के साथ कि अब क्या करें ? अभी सोचों से छुटकारा मिला ही था कि वह ‘सूँ-सूँ’ की आवाज़ भी बंद हो गई। वे एक बार उठे। नल के पास बड़ी आस लेकर गए। लेकिन पानी को नहीं आना था तो वह नहीं ही आया। निराश होकर नल की टोंटी पकड़कर वहीं धम्म से बैठ गए। उनके दिल की धड़कन तेज हो गई। तरह-तरह की बातें मस्तिष्क में उमड़ने-घुमड़ने लगी थीं।

पिछली बार ऐसे समय में ही चार रिश्तेदार आ धमके थे। टैंकर से पानी लाना पड़ा था। पन्द्रह सौ रुपये लाला से उधार लिये, सौ पे चार रुपये महीने पर। गर्भवती महिला की तरह नौ महीने तक सूद का दर्द सहते रहे थे। अब हिम्मत टूट गई है। कल छोटे भाई का परिवार अपने बच्चों के साथ गर्मियों की छूट्टी बिताने आने वाला है। अब क्या होगा ? साँस धौकनी की तरह चलने लगी।

पत्नी घबरा गई। ‘सुनिए जी चिंता मत कीजिए सब ठीक हो जाएगा’ कहकर उन्हें सांन्त्वना देने लगी, लेकिन चक्रधर बाबू पर सोचों का बोझ भारी होता जा रहा था। अब उनकी पत्नी के हाथ में कुछ भी नहीं बचा था। वह उन्हें उटा-पुठाकर अस्पताल ले गई। अस्पताल में भीड़ थी। चिकित्सक एवं नर्स भी आपस में झगड़ रहे थे। वहाँ भी पानी की दरकार थी। नर्सों ने पानी के अभाव में चिकित्सकों की मदद करने से मना कर दिया था। इंतज़ार बहुत कम ही बार अच्छी होती है। चक्रधर बाबू के लिए यह इंतज़ार अत्यधिक काली थी। उनकी पत्नी के लिए अंधकारमय। इस इंतज़ार ने उनकी ही साँस की डोर तोड़ दी।

पानी ने एक और जान ले ली। अखबार वालों ने फिर एक छोटे से कॉलम में जगह दी। आम बात थी। विरोधी पार्टी के विधायक ने मामले को धर दबोचा। मौका हाथ से जाने देना नेता का काम नहीं है। उसके बाद चर्चा होने लगी। प्रशासन हाय-हाय के नारे लगने लगे। सहसा प्रशासन सोये से जगा। अश्वासनों के दौर चले। कहा गया कि देखते हैं क्या कर सकते हैं। खोज-बीन चल रही है कि पानी का पाइप कहाँ से लीक कर रहा है। इंजीनियर लगाए गए हैं। सभी जी-जान से कार्य में जुटे हैं। साथ ही हम खंडन करते हैं। हम पर गलत आरोप हैं। हमने किसी की जान ली। अगर आवश्यकता पड़ी तो इस पर भी जाँच कमेटी बैठाई जाएगी। हमारा काम सबको पानी पिलाना है, जो हम मुस्तैदी से करते आए हैं और करते रहेंगे। यही हमारा वादा है और यही मिशन भी।

फिर तीन दिन बाद पानी आया। सब भूल गए कि चक्रधर बाबू नहीं रहे थे। उन लोगों को पानी की तलाश थी, जो अब पूरी हो गई थी। बस उनकी पत्नी का सबकुछ खो गया था। वह जब भी नल के टोंटी को देखती, उसे पकड़कर रोती और कहती - ‘पानी हाय रे पानी’।

विश्वजीत 'सपन'

3 comments:

  1. Varinder Kumar who works with Indian Railways wrote about this article on facebook "water which is essential to sustain life takes life of so many Chakardhars..shortage of water and electricity is very common...you have explained correctly the plight of a representative Indian living in a small town...opposition parties take the opportunity in their hand as if death of somebody is an indication of triumph for them over their opponent...the conditions continue to be the same for ever and ever...."

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  2. घनश्याम कुमार19 May 2012 at 04:31

    अच्छा लिखा हैं। हालांकि बीच में कुछ पंक्तियाँ छूट गयी लगती हैं।

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    1. धन्यवाद घनश्याम कुमार जी, आपने रचना को समय दिया और पसंद किया ... आपका बहुत बहुत आभार

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