(मित्रों, निकट भविष्य में आने वाले मेरे कहानी-संग्रह पर प्रिय श्री आनंदवर्धन ओझा जी की भूमिका - उनका हृदय के गहन तल से आभार)
श्रीविश्वजीत सपन की पंद्रह कहानियों का
अनूठा संग्रह है--'आदि-अनंत'। लेखक की ये कहानियाँ
किसी स्वप्न-जगत से नहीं उपजतीं,बल्कि जीवन और जगत के
खट्टे-मीठे अनुभवों से आकार पाती हैं। प्रवाहमयी भाषा में लिखी हुई इन
कहानियों में आज के युग का सत्य मुखरित हुआ है--जिसका केंद्रीय पात्र मूलतः
मनुष्य है। मनुष्य के मनःलोक की जटिलताएं, कुंठाएँ, व्यग्रता, विवशता, संत्रास और समस्याएँ इन
कहानियों में मूर्त्त हुई हैं।
कथा-लेखक अपनी कथा-रचना के लिए भूमि
तलाशता अथवा उस भूमि को उर्वर बनाने की सायास चेष्टा करता
नहीं दीखता, वह सामान्य जीवन के किसी एक पक्ष को कथा का सूत्र बनाता है और
कथा-क्रम को अपनी लेखनी की सहज धारा में बहा ले चलता है। लेखक की कहानियाँ
सीधी राह चलती हैं, उसमें अवांतर कथायें सम्मिलित नहीं होतीं। लेखक के मूल
कथन में कोई भटकाव या बिखराव नहीं होता। वह कथा के समानांतर नहीं चलता, बल्कि कथा के साथ-साथ चलता है और पाठकों को भी उसी
कथा-सूत्र में बाँधे रखता है।
संग्रह की अलग-अलग कहानियों में नए-नए
चित्र उभरते हैं, जीवनानुभूतियों के अनेक वातायन
खुलते हैं, पात्रों के साथ परिवेश बदलते हैं और एक नयी कथा, नया परिधान पहनकर पाठकों के सम्मुख
आती है।
संग्रह की पहली कहानी 'कालचक्र' पीढ़ियों के टकराव और उनके चिंतन-वैषम्य को प्रकट करती है। यह कहानी बुढ़ापे की लाठी के टूटने की
पीड़ा को अभियक्त करती है और हार-थककर वृद्धाश्रम की राह
जानेवाले जीवन की कारुणिक व्याख्या करती है--"वाणी की चोट ह्रदय
में बड़ी गहराई तक धँस जाती है। शब्दों के कलेवर उसे असह्य बना
देते हैं। इस 'अहंकार' शब्द के धारदार नश्तर ने
हरिचरण बाबू के दिल में अनगिनत छेद बना दिए। कोई और कहता तो शायद इतनी नहीं
चुभती। अपना बेटा, अपना खून कह रहा था।..."
संग्रह की तमाम कहानियों में ऐसे उद्धरणों की कमी नहीं है, जो ह्रदय-विदारक, मारक तो हैं ही, प्रेरक भी हैं।
'खंड-खंड
जीवन' नामक कहानी समानांतर नारी चरित्रों को सामने लाती
है और प्रताड़ना की चरम दशा में वेदना साकार हो उठती है। 'अपना पता' एक मार्मिक कहानी है, जो नई बुनावट में रची गई है।
यह बेघरों की बेबसी और रंगीन सपनों की अनूठी
दास्तान है, जिसमें सपने कांच के गिलास के तरह क्षण-भर में
चकनाचूर हो जाते हैं और संघर्षों का तपता रेगिस्तान फिर सामने आ खड़ा होता
है। 'नयी शुरूआत' पारस्परिक संबंधों में
सामंजस्य स्थापित करती हुई, समस्याओं का सहज और ठोस समाधान ढूँढती जीवन-कथा है, जिसमें पारिवारिक छोटे-छोटे विवाद कैसे विघटन की
सुरसा को सम्मुख ला खड़ा करते हैं और स्नेह का हल्का-सा स्पर्श कैसे
जीवन-सरोवर में नए रंग भर देता है--यही दिखाया गया है। यह सुख-शान्ति का मार्ग तलाशती एक प्रेरक कथा है। कच्ची उम्र की प्रेम-कुंठा और विश्वासघात की
वेधशाला में पकते मैत्री-संबंधों की करुण कथा पाठकों के
सामने रखती है कहानी--'शेफाली वेड्स...'! इस कहानी में तीन पात्रों के
माध्यम से लेखक ने युवाओं के बीच बदलते समीकरणों और तुर्श होते संबंधों का
रोचक वर्णन किया है।
'प्रेम का
बंधन' नामक कहानी में कथाकार ने बड़ी कुशलता से असफल प्रेम की मनोवेदना
को लोक-कल्याण की मंगल-कामना का स्वरूप दिया है, जागतिक प्रेम को स्वार्थ से ऊपर उठाकर उसे
ईश्वर-प्रेम के तल पर प्रतिष्ठित कर दिया है। 'कलाकार' नामक कहानी सपनों की मौत का बड़ा भयावह और मर्मान्तक चित्र प्रस्तुत
करती है, जिसमें प्रतिभा कैसे कुंठित होकर महानगरों में पिस जाती है और
उत्साह-उमंगों से भरे हसीन सपने कैसे दम तोड़ देते हैं--इसे लेखक ने बड़ी कुशलता
से उकेरा है...!
संग्रह 'आदि-अनंत' की अन्य सभी कहानियों में ऐसे ही वास्तविक से लगानेवाले पात्र परिदृश्यों, घटनाओं और स्थितियों की संरचना करते हैं
तथा लेखक के अभीष्ट को साकार करने में सफल होते हैं।
नए प्रतीक और नव्य विधान से रची गई 'नयी
कहानियों' की पारिभाषिक सीमा-रेखा में श्रीसपन की
कहानियाँ बंधी हुई नहीं हैं, न लेखक इस व्यामोह में पड़ा
दीखता है। ये कहानियाँ कथानक को नयापन देने, प्रतीकों-बिम्बों से सजाने और
नव्य प्रयोगों की हठधर्मिता से सर्वथा मुक्त हैं। कथा के माध्यम से, जो मूल कथ्य है, उसे यथारूप सम्प्रेषित कर और
भावोद्वेलन की पराकाष्ठा पर पाठकों को पहुँचाकर लेखक कथा का समापन करता है।
कथा-लेखन की यही विशेषता इन कहानियों को विशिष्ट बनाती है।
--आनंदवर्धन ओझा.
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