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Sunday 20 April 2014

प्रेरक प्रसंग - 2



चित्रकार

मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। उसे हमेशा ही चिंतन करना चाहिए और स्व-विवेक का प्रयोग करना चाहिए। एक पुरातन कथा है। एक राजा था, जिसकी एक आँख ख़राब थी। वह अपना एक चित्र बनवाना चाहता था। महल में एक याद के तौर पर लगवाना चाहता था। उसने अपने और अगल-बगल के राज्य के सभी चित्रकारों में यह घोषणा करवाई कि जो उसका सबसे उपयुक्त चित्र बनाएगा उसे धन-धान्य से पुरस्कृत कर राजमहल का स्थाई चित्रकार नियुक्त करेगा।

सर्वश्रेष्ठ तीन चित्रकारों को राजमहल में चित्र बनाने के लिए उपयुक्त पाया गया और उन्हें आमंत्रित किया गया। तीनों चित्रकारों ने अपने-अपने विवेक से और अपनी कला को प्रदर्शित करते हुए आपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ चित्र बनाया। प्रथम चित्रकार ने सौन्दर्य को मानक बनाया और राजा का बहुत ही सुन्दर चित्र बनाया जिसमें उनकी दोनों ही आँखें ठीक थीं। राजा ने उस चित्र को नकार दिया। दूसरे चित्रकार ने यथार्थ को मानक बनाया और एक ऐसा चित्र बनाया जिसमें राजा का वास्तविक स्वरूप नज़र आया। राजा ने उस चित्र को भी नकार दिया। तीसरे चित्रकार ने अपने विवेका का प्रयोग कर ऐसा चित्र बनाया जिसमें राजा को आसमान की ओर तीर चलाते दिखाया गया और उनके स्वस्थ शरीर का हिस्सा ही दिख रहा था। राजा ने उस चित्रकार को सम्मानित भी किया और अपने राजमहल का चित्रकार भी नियुक्त किया।
जीवन में कड़ुआ यथार्थ और असत्य दोनों से ही मनुष्य को बचना चाहिए। यथार्थ भी यदि विवेकशील तरीक़े से समाज के सम्मुख रखा जाए तो बहुत उपयोगी होता है।
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सपन

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