माया क्या है
========
एक बार किसी ने बालक गदाय से पूछा कि माया क्या होती है। बालक
गदाय ने कहा था – "अरे, इसे समझना तो बहुत सरल है। तुमने राम, लक्ष्मण और
सीता के वन भ्रमण का चित्र देखा है? घना जंगल होने के कारण प्रभु श्री राम आगे,
बीच में सीता मैया और पीछे लक्ष्मण भैया चलते हैं। लक्ष्मण भैया को श्री राम का
मुख देखे बिना रहा नहीं जाता था जबकि बीच में सीता मैया के होने से अवरोध उत्पन्न
होता था। जब उनका मन नहीं मानता था तो वे सीता माता के चरणों की ओर देखकर विनम्र
निवेदन करते थे कि माता क्या आप थोड़ा सरकेंगीं भैया नहीं दिख रहे हैं। सीता माता
को यह बात पता थी तो वे मुस्कुराकर एक ओर सरक जाती थीं और लक्ष्मण प्रभु श्री राम
को जीभर देख लेते थे। यहाँ भगवान् श्री राम हैं और लक्ष्मण भक्त, किन्तु सीता माता
के बीच में होने से भगवान् को देखने में अवरोध पैदा होता है। इसलिए मान सकते हैं
कि भगवान् को देखने में आने वाली यही रुकावट ही "माया" है। लेकिन फिर हम
यह भी तो जानते हैं कि राम और सीता जगत् के माता-पिता हैं तो पिता को देखने में
माता कैसे बाधा बन सकती हैं? वैसे भी माँ नहीं तो पिता नहीं और पिता नहीं तो माता
का अस्तित्व कैसे? अतः हम यदि पिता को देखने की तीव्र इच्छा में माता से प्रार्थना
करेंगे तो रुकावट हट जायेगी। आई बात समझ में?"
एक साधारण किन्तु सशक्त उदाहरण देकर गदाय ने अपने
बालक-मंडली को बहुत ही सुन्दरता से माया और उसके कारण उत्पन्न रुकावट को समझाया।
यह विलक्षण प्रतिभा सभी में नहीं होती। बहुत
ही कम लोगों को यह पता है कि श्री रामकृष्ण परमहंस का बचपन का नाम गदाधर था और
उन्हें प्यार से लोग गदाय कहकर पुकारा करते थे। गदाय बचपन से ही बहुत मेधावी थे और संसार एक
मूल तत्त्वों को भली-भाँति जानते समझते थे।
विश्वजीत
'सपन'
No comments:
Post a Comment